राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या हर साल सर्दियों में तीव्र हो जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने अब तक कई उपाय अपनाए हैं। ऐसे में “कृत्रिम वर्षा” (cloud-seeding) जैसा आधुनिक विकल्प सामने आया है, जिसे इस बार तीन दिनों तक लागू करने की संभावना जताई जा रही है।
इस योजना के तहत अगली तीन दिनों में कृत्रिम वर्षा को सक्रिय करने की तैयारी है। इस प्रक्रिया में बादलों में विशेष रसायन छोड़े जाते हैं ताकि वर्षा को प्रेरित किया जा सके। यह तकनीक पारंपरिक वर्षा को उत्पन्न नहीं करती, बल्कि मौजूदा बादलों की वर्षा क्षमता को बढ़ाती है।
पहले, उपयुक्त ढंग से भरे और ठोस बादल होना आवश्यक हैं जैसे कि नींबोस्ट्रेटस प्रकार के बादल जिनमें उच्च आर्द्रता और पर्याप्त ऊँचाई हो।
फिर, एक विमानी यूनिट (विशेष रूप से तैयार विमान) से सिल्वर आयोडाइड (AgI) जैसे एजेंट छोड़े जाते हैं, जिससे बादल में छोटे–छोटे बिंदुओं का समवाय होता है और वर्षा शुरू हो सकती है।
यह पूरी प्रक्रिया सुरक्षित व नियंत्रित वातावरण में की जाती है तथा वायुयान नियम-विधि, मौसम विभाग की निगरानी सहित अन्य तकनीकी तैयारियों के बाद ही संभव होती है।इस प्रयोग का मुख्य उद्देश्य है राजधानी में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करना। वर्षा से वायु में मौजूद पीएम2.5 तथा पीएम10 जैसे प्रदूषक घट सकते हैं।
इसके अलावा, वर्षा होने से धूल-उड़ान एवं स्मॉग का स्तर भी कम हो सकता है, जिससे स्वास्थ्य को लाभ होगा, विशेषकर बच्चों और वृद्धों के लिए।यह एक पायलट परियोजना है, जिसे सफल होने पर आगे बढ़ाया जा सकता है और अन्य महानगरों में भी लागू किया जा सकता है।
इस तरह के प्रयोग की सफलता मौसम की अनुकूलता पर निर्भर करती है। आज तक दिल्ली में ऐसे बादल नहीं थे जिनकी संरचना इस तरह के प्रयोग के लिए पर्याप्त हो।
यह याद रखना आवश्यक है कि कृत्रिम वर्षा प्रदूषण का मूल कारण नहीं मिटाती वाहनों, उद्योगों, निर्माण धूल आदि स्रोतों पर नियंत्रण अभी भी ज़रूरी है। मौसम विभाग की मंजूरी के बाद ही विमान रवाना होंगे, एवं यदि बादल उपयुक्त नहीं मिले तो विंडो स्थगित भी हो सकती है।
