पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्षी नेता एवं B J P के विधायक सुबेन्दु अधिकारी सुवेंदु अधिकारी के लिए आज बड़े बदलाव का दिन रहा। उच्च न्यायालय ने उन्हें दिए गए पूर्व संरक्षण को रद्द करते हुए उन्हें ‘सुरक्षा कवच’ से भी बाहर कर दिया है।
अदालत ने कहा है कि संविधान के तहत सिर्फ राष्ट्र-राष्ट्रपति या राज्यपालों को ही “बलैंकेट” संरक्षण मिल सकता है। विधायक के लिए ऐसा सामान्य नियम नहीं है।
साथ ही, यदि पुलिस किसी अभियोजन या कार्रवाई (जैसे गिरफ्तारी) करना चाहती है, तो पहले मामले की जांच करके रिपोर्ट प्रस्तुत करे और फिर कोर्ट की अनुमति ले।
इस फैसले का राजनीतिक महत्व भी है क्योंकि ब्रिटिश काल से चल रहे राजनीतिक-प्रक्रिया और राज्य मशीनरी-द्वारा अभियोजन के आरोप अक्सर उठते रहे हैं।
विधिक दृष्टि से यह फैसला यह संकेत देता है कि जब किसी निर्वाचित प्रतिनिधि पर लगातार FIRs लग रही हों, तो न्यायालय को हस्तक्षेप करने का अधिकार है मगर यह स्थायी ‘छूट’ नहीं है।इससे अधिकारी को अब बिना पूर्व अनुमति के FIR दर्ज होने का खतरा होगा, जो उन्हें पहले मिला हुआ था।
अधिकारी ने इस फैसले के विरुद्ध (SC) में अपील करने की संभावना जताई है। अब पुलिस और राज्य प्रशासन के आगे-पीछे की प्रक्रिया में बदलाव आएगा शिकायतों की जांच, अंदेशा, रिपोर्टिंग आदि पर निगरानी बढ़ सकती है।
यह फैसला दर्शाता है कि न्यायालय ने यह माना है कि किसी भी प्रतिनिधि पर “स्वचालित” संरक्षण नहीं हो सकता यदि गंभीर आरोप हों तो प्रक्रिया के तहत कार्रवाई हो सकती है। चाहे राजनीतिक दलों में कितनी ही चुनौतियाँ क्यों न हों, कानूनी प्रणाली यह सुनिश्चित करती दिख रही है कि किसी पर भी अनियंत्रित अभियोजन न हो।
