बुरहानपुर में शुक्रवार को उतावली नदी तट पर 587वां उर्स शरीफ पारंपरिक और आध्यात्मिक माहौल में संपन्न हुआ। इस अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों से आए 20 हजार से अधिक जायरीन और मुस्लिम समाज के लोगों ने एक साथ मगरिब की नमाज अदा की। दरगाह परिसर और नदी तट पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया था और दिनभर जियारत का दौर चलता रहा। शाम के समय नदी तट पर नमाज अदा करने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।
स्थानीय समाजजनों का कहना है कि यह परंपरा लगभग छह सदियों पुरानी है। पांच शताब्दी पहले हजरत शाह निजामुद्दीन भिखारी रेहमतुल्लाह अलैह ने बुरहानपुर की उतावली नदी तट स्थित नूर बलड़ी पर अंतिम सांस ली थी। उनके वफात के बाद से हर वर्ष उनके उर्स के मौके पर मगरिब की नमाज अदा करने की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक जारी है। हजरत शाह निजामुद्दीन भिखारी मूल रूप से सिंध प्रांत के चिश्ती नगर के निवासी थे। वह इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से पूरे हिंदुस्तान का भ्रमण करते रहे और अंतिम पड़ाव पर बुरहानपुर पहुंचे। यहां उन्होंने एकांत में धर्म का प्रचार किया और सूफी परंपरा के महान संत के रूप में जाने गए।
इस बार नदी में पर्याप्त पानी होने के कारण नमाज नदी से सटे तट पर अदा की गई। शाही जामा मस्जिद प्रबंधन समिति के सैयद अनवर उल्ला साहब बुखारी ने बताया कि 600 साल से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है और इस बार भी शाही जामा मस्जिद के इमाम हजरत सैयद इकराम उल्ला बुखारी की इमामत में हजारों जायरीन ने एक साथ नमाज अदा की। नमाज के बाद देश, दुनिया और शहर में अमन-चैन तथा भाईचारे की दुआएं की गईं।
कार्यक्रम को देखते हुए प्रशासन द्वारा सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की गई थी। बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया ताकि जायरीन बिना किसी बाधा के धार्मिक अनुष्ठान में शामिल हो सकें। धार्मिक श्रद्धा, ऐतिहासिक परंपरा और हजारों लोगों की मौजूदगी ने एक बार फिर यह प्रमाणित कर दिया कि बुरहानपुर की यह धरती सूफी संतों और उनकी शिक्षाओं की गहरी आस्था का केंद्र रही है।