European Union (EU) ने 19वें प्रतिबंध पैकेज का अनुमोदन किया है, जिसमें न सिर्फ रूस के बैंक, ऊर्जा और क्रिप्टो प्लेटफॉर्म को निशाना बनाया गया है, बल्कि उन भारतीय और चीनी कंपनियों को भी शामिल किया गया है, जिन पर रूस को प्रतिबंधों से बचने में मदद करने का आरोप है। विश्लेषकों के अनुसार, इस कदम का बड़ा मकसद है रूस के युद्ध-यन्त्र को आर्थिक रूप से कमजोर करना, खासकर उस हिस्से को जो ऊर्जा और वित्त से जुड़ा है।
रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत स्थित या भारत-संबंधित इकाइयाँ (जिनमें रूस-से जुड़े सौदे शामिल हैं) इस प्रतिबंध का हिस्सा बन सकती हैं। हालांकि, अभी कोई स्पष्ट नाम सार्वजनिक नहीं हुआ है। भारत की एक प्रमुख रिफ़ाइनिंग कंपनी Nayara Energy, जिसमें रूस की Rosneft की हिस्सेदारी है, ने यूरोपीय प्रतिबंधों पर अपनी आपत्ति जताई थी।
भारत के तेल आयातकर्ता अब रूस से क्रूड आयातों को बहुत तेजी से कम करने की स्थिति में हैं, क्योंकि रूस के दो बड़े उत्पादक कंपनियों (Rosneft और Lukoil) को अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है।इसका मतलब यह है कि यदि भारतीय कंपनियाँ रूस-रिलेटेड लेन-देनों में शामिल हैं या रूस से जुड़े नेटवर्क का हिस्सा बनी हैं, तो उन्हें EU के माध्यम से आने वाले वित्तीय और लॉजिस्टिक रास्तों में बाधाएँ आ सकती हैं।
रूस ने इन प्रतिबंधों को “अपर्याप्त” और “प्रतियोगी नहीं” करार दिया है।EU अब उस फ्रोजन रूसियन परिसंपत्तियों को यूक्रेन की मदद के लिए इस्तेमाल करने पर भी विचार कर रहा है, जिसे भारत-चीन की भागीदारी से अलग नहीं देखा जा रहा।भारत-रूस के ऊर्जा व व्यापार संबंधों पर यह प्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकता है, विशेष रूप से क्रूड आयात एवं रिफाइनिंग सेक्टर में।
आगे यह देखना होगा कि भारत की कंपनियाँ किस तरह से अपने लेन-देनों को पुनर्गठित करेंगी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में कैसे बदलाव आएंगे।इस नए पैकेज के साथ EU ने विस्तार से यह बताने का संकेत दिया है कि रूस के युद्ध-यन्त्र को सीधा आर्थिक रूप से निशाना बनाना है,
इसके लिए भारत एवं चीन जैसी तृतीय-पक्ष कंपनियों को भी शामिल किया गया है, यदि वे रूस के प्रतिबंध चक्रव्यूह को सरल बना रही हैं।भारत की कंपनियों तथा उनकी रसद, वित्तीय व व्यापार प्रणालियों को अब इस नए वैश्विक सुरक्षा-नियामक परिमंडल में सावधानीपूर्वक चलने की जरूरत है।
