हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के धामी गांव में हर साल दिवाली के अगले दिन एक अनोखा मेला आयोजित होता है, जिसे ‘पत्थर मेला’ या ‘सती प्रथा मेला’ कहा जाता है। यह परंपरा लगभग 300 साल पुरानी है और यहां के लोग इसे शुभ मानते हैं।
पत्थर मेला दो गांवों, हलोग और जमोग, के बीच आयोजित होता है। इस खेल में दोनों पक्ष एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं, और यह तब तक चलता है जब तक किसी व्यक्ति के शरीर से खून नहीं निकलता। खून निकलने के बाद उस खून से मां भद्रकाली के चबूतरे पर तिलक किया जाता है, और खेल समाप्त होता है।
माना जाता है कि पहले यहां हर वर्ष भद्रकाली को नर बलि दी जाती थी। लेकिन धामी रियासत की रानी ने सती होने से पहले नर बलि को बंद करने का हुक्म दिया था। इसके बाद पशु बलि शुरू की गई, जिसे बाद में बंद कर दिया गया। तब से पत्थर मेला शुरू हुआ, जिसमें किसी के चोट लगने के बाद खून निकलता है तो उसे भद्रकाली का भोग माना जाता है।
मेले के दौरान यदि किसी को चोट लगती है, तो उसका इलाज़ स्थानीय अस्पताल में किया जाता है। स्थानीय प्रशासन और पुलिस इस परंपरा की निगरानी करते हैं ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।
