क्लाउड सीडिंग वह प्रक्रिया है जिसमें बादलों में विशेष पदार्थ (जैसे सिल्वर आयोडाइड, सूखा बर्फ – dry ice, या नमक के कण) छोड़े जाते हैं ताकि उन बादलों से बारिश या हिमपात उत्पन्न हो सके। एक विमान को तैयार किया गया है, और जैसे ही मौसम विभाग उपयुक्त बादल की सूचना देगा, ऑपरेशन शुरू कर दिया जाएगा।
प्राकृतिक बारिश में बादल, नमी, ऊपर-नीचे हवा का परिवर्तन आदि स्वाभाविक रूप से होते हैं। कृत्रिम बारिश में वैज्ञानिक व तकनीकी हस्तक्षेप होता है बादलों में कण छोड़े जाते हैं। लेकिन यह नियंत्रण “बारिश कब और कहाँ होगी” के मामले में बहुत सीमित है। असली बारिश में प्रकृति-चक्र पूरी तरह प्रभावी होता है। क्लाउड सीडिंग से बारिश की मात्रा में बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन यह हर समय सफल नहीं होती और इसके द्वारा प्राप्त बारिश की मात्रा व क्षेत्र अस्थिर हो सकते हैं।
दिल्ली सरकार ने इस वर्ष इस तकनीक को प्रदूषण-शमन के लिए अपनाने का निर्णय लिया है। लेकिन अभी तक ऑपरेशन शुरू नहीं हुआ क्योंकि उपयुक्त बादल नहीं बने है। दिल्ली के आसमान में पर्याप्त नमी या सही प्रकार के बादल नहीं हैं। यदि सफल हुआ, तो अनुमान है कि थोड़ी बारिश का असर वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में 50-80 अंक तक सुधार ला सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग स्वयं अकेला समाधान नहीं है। दिल्ली में प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों, उद्योगों, ठोस ईंधन की झांक और निर्माण धूल है। ये स्रोत बने रहेंगे। सबसे बड़ी समस्या यह है कि बादल और नमी का होना अनिवार्य है अगर आसमान बहुत शुष्क हो, तो सीडिंग कारगर नहीं होगी। यही कारण है कि मौजूदा समय में कार्यक्रम अटका हुआ है।
कृत्रिम बारिश और असली बारिश अलग-अलग चीजें है। कृत्रिम बारिश तकनीक भविष्य के लिए उम्मीद जगाती है, लेकिन यह “बारिश की तरह पूरी तरह” नहीं काम करती। इसके लिए सही बादल, नमी, मौसम की स्थिति और वैज्ञानिक सेट-अप की आवश्यकता होती है। दिल्ली की स्थिति में, यह एक सहायक उपाय हो सकता है, लेकिन मुख्य बड़ा काम प्रदूषण-स्त्रोतों को कम करना और प्राकृतिक मौसम-चक्र को समझना है।
