जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में बुधवार को खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा के लिए 295 साल पहले हुए शहादत दिवस की याद में आयोजित शहीदी मेले में महिलाएं सोने के गहनों से लदी हुई नजर आईं। यह मेला बिश्नोई समाज के लिए न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह उनकी पहचान और परंपराओं को भी जीवित रखता है। इस अवसर पर कई महिलाएं सिर से पैर तक सोने से सजी हुई थीं, जिनमें नर्सिंग ऑफिसर से लेकर व्यवसायिक परिवारों की बहुएं शामिल थीं। इन महिलाओं ने 40 से 50 तोला तक सोने के गहने पहन रखे थे, जिनकी कीमत लाखों रुपए में थी।
जोधपुर से करीब 22 किलोमीटर दूर स्थित खेजड़ली गांव में हर साल यह मेला पर्यावरण संरक्षण और बलिदान की परंपरा को याद दिलाने के लिए आयोजित होता है। इस वर्ष भी मंगलवार से ही मेले में हजारों की संख्या में बिश्नोई समाज के लोग जुटने लगे थे। जोधपुर, फलोदी, नागौर, बीकानेर, जालोर, पाली, सांचौर जैसे जिलों के अलावा हरियाणा, पंजाब और मध्यप्रदेश से भी बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचे और शहीदों को नमन किया। मेले के दौरान खेजड़ली में भगवान जम्भेश्वर के मंदिर में पूजा-अर्चना और प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन हुआ, वहीं हवन कुंड में नारियल की आहुतियां देकर बलिदानियों की स्मृति को जीवित रखा गया।


मेले की रौनक तब और बढ़ गई जब नर्सिंग ऑफिसर मंजू बिश्नोई ने मीडिया से बातचीत में बताया कि वह पिछले 30 वर्षों से अपनी मां के साथ इस मेले में आ रही हैं और इस बार उन्होंने 50 तोला सोने के गहने पहने हैं। वहीं पार्वती बिश्नोई ने कहा कि सोने के गहने पहनना उनकी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है और इस अवसर के लिए वे विशेष रूप से गहने तैयार करवाती हैं। इसी तरह धवा गांव से आई एक अन्य महिला ने बताया कि बचपन से ही इस मेले में गहनों से सजकर आना बिश्नोई समाज की शान और पहचान मानी जाती है।
इस आयोजन के पीछे 295 साल पुरानी वह ऐतिहासिक घटना जुड़ी है जब 21 सितंबर 1730 को जोधपुर के महाराजा अभयसिंह ने खेजड़ी के पेड़ काटने का आदेश दिया था। जब सैनिक पेड़ों को काटने पहुंचे तो गांव की महिला अमृता देवी ने विरोध करते हुए पेड़ से लिपटकर अपनी जान दे दी। उनकी तीन बेटियां और 363 अन्य महिला-पुरुष भी पेड़ों को बचाने के लिए शहीद हो गए। उनके बलिदान के बाद महाराजा ने खेजड़ी के पेड़ काटने पर प्रतिबंध लगा दिया और लिखित में वचन दिया कि मारवाड़ में कभी इस वृक्ष को नहीं काटा जाएगा।
खेजड़ली मेला इसी बलिदान की याद में हर साल भाद्रपद मास की दशमी को आयोजित होता है। इस मौके पर समाज के लोग एकत्र होकर न केवल शहीदों को नमन करते हैं बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देते हैं। इस बार भी मेले के चलते आसपास के रास्तों पर करीब दो किलोमीटर लंबा जाम लग गया और हजारों लोगों ने हवन और अनुष्ठानों में हिस्सा लिया। बिश्नोई समाज के मीडिया प्रवक्ता ओमप्रकाश लोल और राज्य जीव जंतु कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष जसवंत सिंह बिश्नोई ने कहा कि यह आयोजन न केवल बलिदान की गाथा सुनाता है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति और वन्यजीवों की रक्षा के लिए प्रेरित करता है।