प्रस्तावित नियमों के अनुसार, किसी भी “सिंथेटिकली जनरेटेड सूचना” को उस रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक होगा जिसमें यह दर्शाया जा सके कि वह AI या कंप्यूटर संसाधन द्वारा बनाया, उत्पन्न या संशोधित किया गया है।
प्लेटफार्मों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उपयोगकर्ता अपलोड करते समय यह घोषणा करें कि उनकी सामग्री AI-उत्पन्न है या नहीं। यदि उपयोगकर्ता घोषणा नहीं करते हैं, तो प्लेटफार्म के पास ऑटोमेटेड टेक्नोलॉजी या अन्य उपयुक्त तंत्र द्वारा उसकी जांच करने का दायित्व होगा।
प्लेटफार्म को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह लेबलिंग हटाए नहीं जाए, छिपाई नहीं जाए तथा मेटाडाटा को बदला नहीं जाए। यह मासौदा नियम अभी तक लागू नहीं हुआ ह। इसके खिलाफ सुझाव आमंत्रित किये जा रहे हैं और मुख्यमंत्री समय सीमा में सार्वजनिक प्रतिक्रिया मांगी गई है।
AI जनित डीपफेक्स, संशोधित वीडियो, ऑडियो या छवियों से उत्पन्न गलत जानकारी, छवि-हेरफेर, पहचान का दुरुपयोगआदि खतरों से निपटना। डिजिटल प्लेटफार्मों और उपयोगकर्ताओं के बीच पारदर्शिता बढ़ाना ताकि जब सामग्री “सिंथेटिक” हो, तो उपयोगकर्ता जान सके और निर्णय ले सके।
ऐसे प्लेटफार्मों के लिए “सुरक्षित-अनुभव” सुनिश्चित करना जो बड़े-पैमाने पर कंटेंट होस्ट करते हैं, विशेष रूप से उन प्लेटफार्मों में जिनके पास लाखों या करोड़ों उपयोगकर्ता हैं। नियमों का दायरा बहुत व्यापक है,“कंप्यूटर संसाधन द्वारा उत्पन्न, बनाया या संशोधित” की परिभाषा इतनी खुली है कि साधारण एडीटिंग सॉफ़्टवेयर द्वारा किए बदलाव भी इस दायरे में आ सकते हैं।
लेबलिंग + मेटाडाटा की तकनीकी आवश्यकता को लागू करना सभी प्लेटफार्मों के लिए आसान नहीं होगा — विशेष रूप से छोटे प्लेटफार्मों या यूज़र-जनरेटेड कंटेंट वाले प्लेटफार्मों के लिए। यदि उपयोगकर्ता स्वयं घोषणा नहीं करें, तो प्लेटफार्मों को जांचने-की तकनीकी जिम्मेदारी दी जा रही है, यह प्लेटफॉर्म्स पर भारी बोझ ला सकती है।“सिर्फ लेबलिंग से उपयोगकर्ता भ्रम से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकते” ,विशेषज्ञों का मानना है कि इसके साथ जागरुकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
मसौदा नियम प्रकाशित किया गया है, और सार्वजनिक एवं उद्योग-प्रतिक्रिया के लिए खोल दिया गया है। सुझाव जमा करने की अंतिम तिथि है 6 नवंबर 2025।उसके बाद इन सुझावों के आधार पर फाइनल नियम जारी किए जाएंगे, उसके बाद प्लेटफार्मों को अनुपालन करने का समय मिलेगा।
भारत में डिजिटल प्लेटफार्मों और AI उपकरणों के बढ़ते उपयोग को देखते हुए, यह प्रस्ताव एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि लागू हुआ, तो यह उपयोगकर्ताओं को “क्या वास्तविक है और क्या नहीं” यह समझने में मदद करेगा, तथा प्लेटफार्मों को अधिक जिम्मेदार ठहरायेगा। हालांकि, इसके प्रभावी क्रियान्वयन व तकनीकी-व्यावहारिक चुनौतियों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
