उत्तर भारत में पराली जलाने को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। कृषि क्षेत्र में फसल कटाई के बाद बचे पराली को खेतों में जलाना किसानों के लिए आसान विकल्प माना जाता है, लेकिन इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इस बार भी कई राज्यों में किसानों ने पराली जलाने की घटनाएं कीं, जिससे स्थानीय प्रशासन सक्रिय हो गया। अधिकारियों ने किसानों को चेतावनी दी कि यह गैरकानूनी गतिविधि है और प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाने से हवा में हानिकारक कण और ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान होता है बल्कि श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
सरकार ने कई विकल्प सुझाए हैं जैसे कि पराली के चूरा बनाने वाले मशीनों का इस्तेमाल और जैविक खाद में पराली का उपयोग। हालांकि, किसानों के अनुसार मशीनों की उच्च लागत और समय की कमी उन्हें पराली जलाने पर मजबूर करती है।
स्थानीय प्रशासन ने कहा कि इस समस्या का समाधान बातचीत, जागरूकता और तकनीकी सहायता के माध्यम से किया जाएगा। वहीं, नागरिकों ने हवा की गुणवत्ता पर चिंता जताई और सख्त कदम उठाने की मांग की।
