पुणे के शनिवारवाड़ा में नमाज पर मचा बवाल

पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा किले में मुस्लिम महिलाओं द्वारा नमाज अदा करने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक और सांप्रदायिक विवाद छिड़ गया है। इस घटना के बाद भाजपा सांसद मेधा कुलकर्णी और अन्य हिंदू संगठनों ने ‘शुद्धिकरण’ के नाम पर गोमूत्र छिड़ककर विरोध प्रदर्शन किया, जिसे कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने वाला कदम बताया है।

शनिवारवाड़ा के परिसर में तीन मुस्लिम महिलाओं ने नमाज अदा की। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के एक अधिकारी ने ऐतिहासिक स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष (AMASR) नियम, 1959 के तहत शिकायत दर्ज कराई। पुणे पुलिस ने अज्ञात महिलाओं के खिलाफ मामला दर्ज किया है और मामले की जांच जारी है।

बीजेपी सांसद मेधा कुलकर्णी ने शनिवारवाड़ा में नमाज अदा करने को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए विरोध प्रदर्शन किया और उस स्थान को ‘शुद्ध’ करने के लिए गोमूत्र छिड़का। उन्होंने इसे हिंदू संस्कृति पर हमला करार दिया और प्रशासन से कड़ी कार्रवाई की मांग की।

इस कदम की आलोचना करते हुए, मुस्लिम समाज सुधारक संगठन मुस्लिम सत्यशोधक मंडल ने इसे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन बताया। संगठन के अध्यक्ष शम्सुद्दीन तांबोली ने कहा कि कई मुस्लिम महिलाएं मस्जिदों में प्रवेश न मिलने के कारण सार्वजनिक स्थानों पर नमाज अदा करने को मजबूर हैं।

इस घटना ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। शिवसेना के पुणे इकाई प्रमुख रवींद्र ढांगेकर ने मेधा कुलकर्णी की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाया है। भाजपा के पुणे इकाई प्रमुख धीरज घाटे ने ढांगेकर की टिप्पणियों का विरोध किया और शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे से कार्रवाई की मांग की।

विपक्षी दलों ने भी कुलकर्णी की आलोचना की है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता अजीत पवार ने पुलिस से उनके खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की है, जबकि कांग्रेस ने इसे सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने वाला कदम बताया है।

शनिवारवाड़ा में नमाज अदा करने की घटना ने धार्मिक स्वतंत्रता, सांप्रदायिक सौहार्द और राजनीतिक उद्देश्यों पर गहरे सवाल खड़े किए हैं। यह मामला न केवल पुणे, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में चर्चाओं का विषय बन गया है। अब देखना यह है कि प्रशासन और राजनीतिक दल इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं।