पंजाब में इस बार धान की कटाई के साथ ही खेतों में पराली जलाने की घटनाओं में तीव्र वृद्धि हुई है। रविवार को अकेले 122 घटनाएँ दर्ज की गईं, जिससे इस सीज़न में कुल घटनाओं की संख्या743 तक पहुँच गई।मुख्य जिलो में तरनतारन ने सबसे अधिक 224 घटनाएँ दर्ज की हैं, इसके बाद अमृतसर में 154 घटनाएँ सामने आईं।
यह स्थिति स्वास्थ्य के लिहाज से चिंताजनक है, खासकर वृद्धों, बच्चों एवं श्वसन संबंधी रोगों से ग्रस्त लोगों के लिए।अब तक 266 फिर दर्ज की जा चुकी हैं, इन मामलों में खेतों में पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। 296 “रेड एंट्री की गई हैं.
किसानों के राजस्व रिकॉर्ड में इससे उन किसानों को ऋण लेने या अपनी जमीन बेचने/बंधक रखने में बाधा आएगी।इस घटना से जुड़ी पर्यावरणीय मुआवजे के रूप में किसानों पर 16.8 लाख से अधिक का जुर्माना लगाया गया है, जिसमें अभी तक करीब 12 लाख वसूल हुआ है।
पराली जलाने का प्रमुख कारण है: धान के बाद जल्दी खेत तैयार करना ताकि अगली फसल समय पर बोई जा सके। खेतों में पराली प्रबंधन के विकल्पों की कमी और पारंपरिक तरीकों की प्रवृत्ति इसे बढ़ावा दे रही है।मौसम की शुष्कता तथा कटाई चक्र में तेजी ने भी पराली जलने की घटनाओं को बढ़ाने में योगदान दिया है।
जैसा कि अभी तक धान की खेती का करीब **56.5 % हिस्सा कटाई के बाद है, आने वाले दिनों में इन घटनाओं में और वृद्धि की संभावना है।
प्रशासन को चाहिए कि किसान समुदाय को पराली प्रबंधन के वैकल्पिक उपाय उपलब्ध कराए और जागरूकता कार्यक्रम तेज करें।साथ ही, वायु गुणवत्ता नियंत्रण के लिए तत्काल कदम उठाना आवश्यक है।
पंजाब में पराली जलने की घटनाएँ पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रही हैं। कानूनी कार्रवाई भले तेज हुई हो FIRs और जुर्माने दर्ज किए गए हों लेकिन समस्या का मूल कारण कृषि चक्र की तैयारी, विकल्पों की कमी व पारंपरिक प्रवृत्ति में है।
यदि जल्द उपाय न उठाए गए, तो वायु प्रदूषण का स्तर और अधिक बढ़ सकता है, जिससे राज्य और उससे बाहर के क्षेत्रों में भी स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय संकट उत्पन्न होगा।
